9 दिवसीय वाल्मीकि रामायण कथा का हुआ समापन
वाराणसी।संकुलधारा पोखरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर में परम पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रखर जी महाराज के सानिध्य में कोरोना महामारी के शमन हेतु चल रहे 51 दिवसीय विराट श्री लक्षचण्डी महायज्ञ की श्रृंखला में आयोजित दिन 9 दिवसीय बाल्मिकी रामायण कथा के नौवें दिन कथा का समापन हुआ।
व्यासपीठ, पवित्र ग्रंथ रामायण व प्रभु श्रीराम के पूजन अर्चन के बाद कथा व्यास जगद्गुरु श्री राघवाचार्य जी महाराज ने प्रभु के संकीर्तन के साथ कथा का प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा कि कृतज्ञता ही सनातन धर्म है। इस जगत में धर्म ही सार है और धर्म से जो अदृष्ट (पुण्य) उत्पन्न होता है वह दिखाई नहीं देता लेकिन अपना कार्य करता है। वैसे ही यज्ञ से निकलने वाला अदृष्ट दिखता नहीं लेकिन अपना कार्य करता है उसी के निमित्त स्वामी प्रखर जी महाराज के द्वारा किये जा रहे लक्षचण्डी महायज्ञ के फलस्वरूप कोरोना की समाप्ति भी हो रही है। कल यानी बुधवार को यज्ञ की पूर्णहुति के साथ कोरोना की भी पूर्ण रूप से समाप्ति हो जाएगी।
उन्होंने महिला दिवस के अवसर पर सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारतवर्ष ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसे माता की संज्ञा दी गई है। यहां नारी को किसी एक दिन नहीं बल्कि हर दिन पूजते हैं। ऐसे ही रामायण में भी महिला के चरित्र का वर्णन है। इसमें विश्व की श्रेष्ठ महिला माता सीता के चरित्र का वर्णन है। भारतवर्ष प्रभु राम के चरित्र और सिद्धान्त के कारण ही है। जो देश प्रभु राम के आदर्श पर चलता है वही राष्ट्र कहलाता है।
इसके साथ ही उन्होंने आज के प्रसंग का प्रारम्भ करते हुए बताया कि जब प्रभु राम के राज्याभिषेक की तैयारी चल रही होती है उसी समय मंथरा जो कि महारानी कैकेयी की दासी रहती है वह महारानी कैकेयी की मति में भेद पैदा कर देती है। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये।
राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा| प्रयाग पहुँच कर राम ने भरद्वाज मुनि से भेंट की। वहाँ से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुँचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे।
अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यंत पश्चाताप हुआ। सीता के माता-पिता सुनयना एवं जनक भी चित्रकूट पहुँचे। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे कि राम ने, पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया। भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे। इसके साथ ही उन्होंने रामायण के अन्य कांडों का भी वर्णन करते हुए कथा का समापन किया। कथा के मध्य में जय सिंह व उनकी टीम ने भजनों की प्रस्तुति कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
वहीं महायज्ञ के 50वें दिन 108 कन्या पूजन, 108 ब्राह्मण पूजन के साथ 108 सौभाग्यवती महिलाओ का पूजन अर्चन कर उन्हें वस्त्र व अन्य वस्तुएं भेंटकर उनका सम्मान किया गया। इस अवसर पर स्वामी प्रखर जी महाराज ने बताया कि आज विश्व महिला दिवस है और आज के ही दिन कन्या पूजन और सौभाग्यवती महिलाओं का पूजन हुआ जो कि बहुत ही सौभाग्य की बात है। आज काशी के सभी विद्वानों की पत्नियों के सम्मान में उनका पूजन हुआ है। क्योंकि विद्वनों के साथ उनकी पत्नियों का सम्मान भी जरूरी है।
कार्यक्रम में परमपूज्य स्वामी प्रखर जी महाराज, आनंद प्रकाश ब्रह्मचारी जी महाराज, कथा के मुख्य यजमान गोविंद लोहिया, महायज्ञ समिति के अध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार खेमका, सचिव संजय अग्रवाल, कोषाध्यक्ष सुनील नेमानी, संयुक्त सचिव राजेश अग्रवाल, डॉ सुनील मिश्रा, अमित पसारी, शशिभूषण त्रिपाठी, अनिल भावसिंहका, मनमोहन लोहिया, अनिल अरोड़ा, विकास भावसिंहका, आदि लोग उपस्थित रहे।
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