रामनाथ चौधरी शोध संस्थान (लॉन)
बी.एच.यू. सुंदरपुर रोड, नरिया, वाराणसी
दिनांक 24 मई से 30 मई 2022 तक सांय 5:30 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक
कथा के पंचम दिवस साध्वी आस्था भारती जी ने वेणुगीत का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से कह सुनाया| कान्हा के अधरों पर सजी विश्व-मोहिनी बाँसुरी पूर्ण समर्पण का प्रतीक है| वह प्रभु के हाथों का यंत्र है| बाँसुरी संदेश दे रही है कि स्वयं को मिटाकर ही आप प्रभु के हाथों में सज सकते हैं| स्वयं के जीवन को विकारों से रिक्त कर आपका जीवन भी बाँसुरी जैसी मीठी तान छेड़ता है|
इसके उपरान्त श्रीकृष्ण का मथुरा गमन व कंस वध की कथा को बाँचा गया| कंस ने अपनी बुद्धि के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को समझने का प्रयास किया था, इसलिए भ्रमित हो गया| यही भूल आज का इंसान भी करता है| सदैव परमात्मा को अपनी बुद्धि के द्वारा ही समझना चाहता है, जो संभव नहीं है| एक दार्शनिक ने सटीक कहा है- You cannot hold the hand with a tong which is held by that hand itself... आप उस चिमटे के द्वारा वह हाथ नहीं पकड़ सकते, जिस हाथ ने स्वयं चिमटे को पकड़ा हुआ है| अर्थात जो इंद्रियाँ स्वयं उस ईश्वर की शक्ति से कार्यरत हैं, उनके माध्यम से ईश्वर को देखना, उनकी लीलाओं को समझ पाना असंभव है| इस साक्षात्कार के लिए हमें सूक्ष्म साधन चाहिए और वह है दिव्य दृष्टि... eye of the soul. पूर्ण सद्गुरु ही इस तृतीय नेत्र को उन्मीलित कर शिष्य को उसकी शक्तियों के अनंत स्त्रोत, उस सच्चिदानंद प्रभु से जोड़ देते हैं|
साध्वी जी ने भावी पीढ़ी के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा- युवा किसी भी राष्ट्र की शक्ति हुआ करती है| आप एक बज़्ज़ार्ड पक्षी को 6 से 8 फीट चौड़े डिब्बे में रख दीजिए| भले ही वह डिब्बा ऊपर से खुला होगा, तब भी वह पक्षी वहाँ से नहीं उड़ेगा| कारण? बज़्ज़ार्ड हमेशा 10-12 कदम दौड़ लेने पर ही उड़ान भर पाता है| डिब्बे में दौड़ने के लिए पर्याप्त स्थान न देखकर वह उड़ने तक की कोशिश ही नहीं करता| बावजूद इसके कि उसके पास उड़ने के लिए पंख और रास्ता दोनों मौजूद हैं|
निःसंदेह यह बात चौंका देने वाली है| But, just check if our young generation falls in the same category as well… दिशाविहीन यह पीढ़ी शराब, नशा, depression जैसी बीमारियों से घिरी है| अपनी मानसिक धारणाओं व नकारात्मक सोच के दायरों में कैद है! याद रखिए, हर समस्या से निकलने की क्षमता और रास्ता- दोनों ही ईश्वर ने हमें दिए हैं| बस, ज़रा-सा सिर उठाकर ऊपर देखने भर की देरी है! बस इरादे बुलंद कर अपनी आत्मिक शक्तियों को जानने भर की देरी है! अपने real self को जगाने भर की देरी है| श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं- एक जागा हुआ व्यक्ति स्वयं अपने लिए उचित दिशा, सही मार्ग का चयन कर लेता है| इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है- Real self awakening यानी आत्मा का जागरण| अंत में साध्वी जी ने संस्थान के बोध प्रकल्प के तहत युवाओं का आवाहन करते हुए कहा- यह श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ युग-परिवर्तन का महायज्ञ है| इसी यज्ञ की ज्वाला से ही नए युग का अभ्युदय होगा| यदि इसमें आप अपनी आहुति न दे पाए तो समझ लीजिएगा कि यौवन व्यर्थ है वाराणसी से संवाददाता अभिषेक दुबे
0 टिप्पणियाँ