उत्तर प्रदेश में लगभग सभी बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आ गये हैं।इन परिणामों के बाद जो दौर शुरू होगा वो है "प्रतिभा सम्मान" करना।सभी विद्यालय,समाजसेवी,सरकारें और बहुत सारे लोग जो सफल और चोटी के बच्चे हैं उनका प्रतिभा सम्मान भी करेंगे।ऐसा होना भी चाहिए जो सम्मान के हक़दार हैं वो निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं।लेकिन उन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जो असफल रहे हैं या जिनके अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नही आये।उनमें भी प्रतिभा है,ज़रूरत है उसे तलाशने की और उसका निर्माण करने की ।प्रतिभा सम्मान के साथ साथ प्रतिभा खोज और प्रतिभा निर्माण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। जब परीक्षायें चल रही थी तब हर बच्चा हॉट सीट पर था और अधिक से अधिक करने का दवाब उस पर था।शायद परिणाम आने के बाद दवाब मुक्त हो जाये।किसी भी परीक्षा का परिणाम केवल आपका आंकलन करता है न की आपकी ज़िंदगी की साँसों को ऑक्सीजन देता है।फ़र्क़ बस इतना है की कभी ये आंकलन आपके पक्ष में आ जाता है और कभी विपक्ष में रहता है।हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी यही है कि हम पक्ष में आए परिणाम को जीवन भाग्य मानकर प्रसन्न हो जाते हैं और विपक्ष में आए परिणाम को जिंदगी की हार मान लेते हैं।इस समय में माता पिता और संरक्षको की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है।यहाँ अगर वो अपने बच्चे के साथ है तो
परिणाम का विपरीत आना बच्चे को निराश ज़रूर करेगा लेकिन टूटने नही देगा।कई बार हम देखते है की किसी घर के छोटे से बग़ीचे में कुछ पौधे लगे होते हैं।उन पौधों में कुछ अच्छी दशा में होते है वो बारिश के पानी और रोज़ मिलने वाले पानी से फलते फूलते रहते हैं।लेकिन कुछ पौधे जिनका तना कमज़ोर होता है या जड़े कम गहरी होती हैं उन्हें थोड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।फिर भी बग़ीचे का मालिक अपनी कोशिश जारी रखता है।बग़ीचे में रोज़ जो देखभाल होती है उन्हें हम नियमित विद्यालय का अध्ययन कह सकते हैं।जब कभी तेज आँधी व तूफ़ान आते हैं तो जो मज़बूत पौधे होते हैं वो अपना वजूद बचा लेते हैं।लेकिन कमज़ोर पौधे अपना नियंत्रण खो बैठते हैं और गिर जाते हैं।इस आँधी को हम परीक्षाओं की संज्ञा दे सकते हैं।अब आँधी के जाने के बाद सब कुछ उस बग़ीचे के मालिक पर निर्भर करता है की वो क्या करे।क्या वो गिरे हुए पौधों को वहाँ से हटा दे या फिर उन्हें फिर से खड़ा करे! अक्सर इस दशा में बग़ीचे का मालिक जो गिर हुए कमज़ोर पौधे हैं उन्हें किसी लकड़ी के सहारे खड़ा कर देता है और छोटी रस्सी से बाँध देता है।ये उसका प्राथमिक काम होता है,जो हाथो हाथ किया जाता है,क्यूँ की सबसे पहले गिरे हुए पौधे को खड़ा करने की ज़रूरत होती है और फिर उसे बाँधने की।परीक्षा परिणाम रूपी आँधी के बाद हर माँ बाप को चाहिए की वो अपने उस बच्चे को सहारा देकर खड़ा करें जो निराश होकर गिर पड़ा है।माँ बाप का प्यार से बच्चे के कंधे पर हाथ रखना उसे इस बात का एहसास करवाएगा की उसके साथ कोई है।फिर आवश्यकता है उसे बाँधने की जैसा पौधे को बाँधा गया।बाँधने का मतलब यह ये है की माँ बाप उस बच्चे को विशेष रूप से देखें उसकी बार बार काउंसलिंग करे।हर वक़्त उसे ये एहसास करवाएँ की वो इस लड़ाई में उसके साथ बँधे हुए है उसे डरने की ज़रूरत नहीं है बस सकारात्मक रूप से आगे बढ़ने की ज़रूरत है।अगर पौधे की जड़ें (चेतना) कमज़ोर है तो उसे खाद पानी और अच्छे प्रकाश की ज़रूरत है।विपरीत परिणाम से प्रभावित बच्चा अगर किसी विषय में कमज़ोर है तो उसके लिए अतिरिक्त उपाय किए जा सकते हैं।इस प्रकार माँ बाप का एक क़दम बच्चे को घोर निराशा में डूबने से तो बचा ही सकता है साथ में फिर से नयी शुरुआत करने का हौसला भी दे सकता है।ठीक उसी तरह जब बच्चा पहली बार पैदल चलना सीखता है तो वो गिर जाता है ,फिर सँभलता है फिर गिरता है....हर बार माता पिता उसे खड़ा कर देते हैं....और कहते हैं
#come_on_child...तुम्हें दौड़ना है।बस इसी पंक्ति की ज़रूरत आपके बच्चे को अब पड़ सकती है....।
याद रखिये...”सब कुछ खोने से अच्छा है उस उम्मीद का न खोना जिसके दम पर सब कुछ वापस पाया जा सकता है।”
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